उत्तर प्रदेश : ट्यूशन से छिपकर जाती ट्रैक पर, 5 बार बनी मुंबई मैराथन चैंपियन...
Uttar Pradesh: Hiding from tuition, on the track, became the 5 time Mumbai Marathon champion...
मैं उत्तर प्रदेश के रायबरेली से स्टीपलचेज धावक सुधा सिंह हूं और 3000 मीटर इवेंट में हिस्सा लेती हूं। मेरे नाम नेशनल रिकॉर्ड दर्ज है। साल 2005 से नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर होने वाले कई इवेंट में हिस्सा लेना शुरू किया।
मैं उत्तर प्रदेश के रायबरेली से स्टीपलचेज धावक सुधा सिंह हूं और 3000 मीटर इवेंट में हिस्सा लेती हूं। मेरे नाम नेशनल रिकॉर्ड दर्ज है। साल 2005 से नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर होने वाले कई इवेंट में हिस्सा लेना शुरू किया।
पढाई में नहीं थी दिलचस्पी
पढाई में शुरू से ही दिलचस्पी कम होने की वजह से एथलीट बनने की तरफ रुझान बढ़ गया। बचपन से ही मां और पापा मेरी पढ़ाई और फ्यूचर को लेकर फिक्रमंद रहते थे। क्योंकि मैं ट्यूशन को छोड़-छोड़ कर दौड़ने चली जाया करती थी।
मेरी दिलचस्पी और खेलों के प्रति जुनून को देखते हुए पापा ने मुझे अच्छी ट्रेनिंग के लिए लखनऊ भेजने का फैसला किया। क्योंकि उन्हें मुझपर पूरा भरोसा था कि मैं एक दिन ओलिंपिक गेम्स में मेडल जरूर हासिल करूंगी।
परिवार ने मेरे सपने को पूरा करने के लिए हर मुमकिन कोशिश और पूरा सपोर्ट किया जिसकी वजह से मैं रायबरेली से लखनऊ आई और तैयारी शुरू की। लगातार कड़ी मेहनत कर इस मुकाम को हासिल किया है।
एथलीट करियर की शुरुआत
मैंने एथलीट करियर की शुरुआत साल 2005 में की। इंडियन ओलंपियन एथलीट में 3000 मीटर स्टीपलचेज में एशियन चैंपियन भी रह चुकी हूं।
एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में अब तक दो गोल्ड और चार सिल्वर मेडल जीता। साल 2010 के एशियन गेम्स में 9 मिनट 55 सेकेंड में रेस को पूरा करके गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद मैं पहली एशियन चैंपियन खिलाड़ी बन गईं और 3000 मीटर स्टीपलचेज़ एशियन गेम्स में पदक जीता।
साल 2012 में मैंने ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करते हुए अपने ही नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 9 मिनट 47 सेकंड का रिकॉर्ड बनाया। साल 2014 में हुए एशियन गेम्स में चौथे स्थान पर रही थी, लेकिन तीसरे स्थान पर रहने वाली खिलाड़ी जब अयोग्य करार दे दी गई तो तीसरे स्थान पर आ गई और कांस्य पदक अपने नाम किया।
घर में पैसों की तंगी के बावजूद परिवार ने दिया साथ
मैं बहुत ही साधारण परिवार से हूं। घर में हमेशा आर्थिक तंगी ही देखी। लेकिन मेरे परिवार वालों ने अपनी ख्वाहिशों को मार कर मेरा साथ दिया और हमेशा ढाल बनकर मेरे लिए खड़े रहे रहे। हालांकि अब मैं इंटरनेशनल लेवल पर देश का नाम ऊंचा कर चुकी हूं और परिवार को हर खुशियां देना चाहती हूं।
एक्सप्रेस ट्रेन के साथ कदम ताल करना पड़ता
एथलीट एक ऐसा खेल जहां आपको जीत के लिए पूरा जोर लगाना पड़ता है। इसके लिए किसी एक्सप्रेस ट्रेन के साथ कदम ताल करना पड़ता और मैंने भी यही किया है।
स्वाइन फ्लू ने समर ओलिंपिक पर लगाया ब्रेक
इसके बाद साल 2015 में 19वां स्थान हासिल करते हुए रियो ओलिंपिक में महिला मैराथन इवेंट के लिए भी अपनी जगह बनाई । साल 2016 में इंटरनेशनल एमेचर एथलेटिक्स फेडरेशन डायमंड लीग में शानदार खेल का प्रदर्शन किया।
स्वाइन फ्लू होने की वजह से समर ओलिंपिक में भी हिस्सा नहीं ले सकी। एशियन गेम्स साल 2018 में फिर से मैंने ट्रैक पर वापसी की जिसमें ललित भनोट और रेनू कोहली के अंडर में ट्रेनिंग की जिसका नतीजा 9 मिनट 40 सेकेंड में रेस को पूरा करते हुए सिल्वर पदक जीता।
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