स्विस बैंक से प्राप्त सूची ने जगाई नई उम्मीदें

स्विस बैंक से प्राप्त सूची ने जगाई नई उम्मीदें

कुलिन्दर सिंह यादव

स्विट्जरलैंड ने हाल ही में कालेधन की सूचना के स्वतः आदान-प्रदान की नई व्यवस्था के तहत भारत के साथ-साथ विश्व के 75 अन्य देशों को उनके नागरिकों के स्विस बैंक खातों की सूचना प्रदान की है | पहली बार भारत सरकार के पास ऐसी सूचना आई है जिसके लिए प्रयास काफी समय से किए जा रहे थे | स्विस बैंक गोपनीयता के लिए विश्व विख्यात है | विदेशी नागरिकों द्वारा खोले गए खाते स्विट्जरलैंड की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाते है | लेकिन विगत वर्षों में पूरे विश्व से उन पर दबाव पड़ने लगा | जिससे फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ने जनवरी 2017 को बहुत सारे देशों के साथ ऐसे समझौते किए जिसमें सूचनाओं के आदान-प्रदान की बात की गई | परंतु उसमें गोपनीयता की भी शर्त रखी गई | इससे पहले इस तरह की सूचना 2018 में भी 36 देशों के साथ साझा की गई थी | स्विट्जरलैंड के संघीय कर प्रशासन ने एईओई के वैश्विक मानदंडों के तहत वित्तीय खातों की जानकारी साझा की है | जिसमें भारत भी शामिल है, स्विट्जरलैंड के संघीय कर प्रशासन के अनुसार इस व्यवस्था के तहत अगली सूचना सितंबर 2020 में साझा की जाएगी | एफटीए ने समझौते में शामिल 75 देशों के कुल 31 लाख खातों का विवरण उपलब्ध कराया है |

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यह जरूरी नहीं है की जिन सूचनाओं को भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड से प्राप्त किया है, उसमें सभी अवैध खातों की जानकारी हो, उसमें कुछ खाताधारक ऐसे भी होंगे जो वैध तरीके से अपने व्यवसाय या अपनी शिक्षा के लिए स्विट्जरलैंड से जुड़ाव रखते होंगे | भारत सरकार को अब द्वितीय चरण में उन खाताधारकों के भी बारे में जानकारी एकत्र करने का प्रयास करना होगा जिनके खाते अब बंद हो चुके हैं | 2018 की रिपोर्ट के अनुसार स्विस बैंक में भारतीयों का कुल जमा 7 हजार करोड रूपया था | सूचनाओं का स्वतः आदान-प्रदान एक औपचारिक प्रक्रिया है | इसलिए हमारे पास ज्यादा मात्रा में सूचनाएं आएंगी इससे निश्चित तौर पर टैक्स चोरी रोकने में मदद मिलेगी | पहले सिर्फ आपराधिक व्यक्तियों की सूचनाएं ही साझा होती थी | इस माध्यम से प्राप्त सूचनाओं को हम सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं लेकिन इनके आधार पर कार्यवाही अवश्य कर सकते हैं |

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भारत सरकार के लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि जो सूचनाएं हमें स्विस बैंक से मिली हैं | क्या वह हमारे लिए उपयोगी हैं या नहीं ? क्योंकि गाइडलाइन के अनुसार किसी भी खाता धारक का नाम और उसका स्थाई पता किसी भी अन्य देश को नहीं सौंपा जाता है | इसके अतिरिक्त बैंक बैलेंस की जानकारी भी इस प्रकार के सूचनाओं के अंतर्गत नहीं दी जाती है | इसलिए यह हमारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक चुनौती होगी | इस प्रकार की सूचनाएं एक विशेष कोडिंग प्रक्रिया के तहत उपलब्ध होती हैं | जो मात्र इशारा कर सकती हैं, और उस को अंजाम तक पहुंचाना जांच एजेंसियों का काम है | विश्व के प्रभावशाली देशों के दबाव के कारण ही स्विट्ज़रलैंड ने अपने नियमों में आंशिक बदलाव करते हुए यह सूचना सदस्य देशों को उपलब्ध कराई है | इस कदम से द्वीपीय देशों में अवैध रूप से अपना धन जमा करने वालों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी |

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आतंकी फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग मनी की बारंबारता विश्व में लगातार बढ़ रही है | इसलिए सभी देशों को इस तरह की सूचनाओं का आदान-प्रदान विश्व शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए करना आवश्यक हो गया है | स्विट्ज़रलैंड उन्हीं देशों को सूचनाएं उपलब्ध कराता है, जहां पर गोपनीयता के कानून परिपक्व हैं | भारत के लिए राहत की बात यह है कि भारतीयों द्वारा जो धन स्विस बैंक में जमा किया गया है | उसके आधार पर भारत विश्व में 74 वें नंबर पर आता है | लेकिन आशंका यह भी जताई जा रही है की हो सकता है, विगत वर्षों में अवैध रूप से जमा रहे धन का प्रवाह किसी अन्य देश में हो गया हो | इसलिए जब तक विगत वर्षों की भी सूचनाएं ना आ जाए कुछ भी कहना उचित नहीं होगा |

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इस प्रकार की सूचनाएं अब प्रत्येक वर्ष सितंबर माह में संबंधित देशों को दी जाएंगी | निश्चित तौर पर स्विट्जरलैंड सरकार के इस कदम से उन देशों को राहत मिलेगी जहां पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है | लेकिन संबंधित देशों के जांच एजेंसियों और सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौतियां भी ज्यादा होंगी क्योंकि यह सूचनाएं एक कोडिंग प्रक्रिया के अंतर्गत रहती हैं, जिनको डिकोड करना अपने आप में काफी मुश्किल है | लेकिन इस कार्यवाही के बाद से कर चोरी और धन के अवैध आवागमन में गिरावट अवश्य देखने को मिलेगी इसमें कोई संदेह नहीं है |

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