मुंबई में 11 जुलाई 2006 को लोकल ट्रेन में सात विस्फोट मामले के दोषियों ने उच्च न्यायालय में सजा को चुनौती दी
Seven convicts in the Mumbai local train blasts case on July 11, 2006 challenged their sentences in the High Court
मुंबई में 11 जुलाई 2006 को पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर लोकल ट्रेन में सात विस्फोट हुए थे जिनमें 180 से अधिक लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे। इस मामले में अदालत ने 12 आराेपियों को दोषी ठहराया था। इसके बाद दाेषियों ने इस फैसले को चुनौती देते हुए बंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। बंबई उच्च न्यायालय की विशेष पीठ पिछले पांच महीनों से विस्फोट मामले से संबंधित अपीलों पर दिन-प्रतिदिन सुनवाई कर रही है।
मुंबई: मुंबई में 11 जुलाई 2006 को पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर लोकल ट्रेन में सात विस्फोट हुए थे जिनमें 180 से अधिक लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे। इस मामले में अदालत ने 12 आराेपियों को दोषी ठहराया था। इसके बाद दाेषियों ने इस फैसले को चुनौती देते हुए बंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। बंबई उच्च न्यायालय की विशेष पीठ पिछले पांच महीनों से विस्फोट मामले से संबंधित अपीलों पर दिन-प्रतिदिन सुनवाई कर रही है।
बंबई उच्च न्यायालय में सोमवार को एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि 11 जुलाई 2006 को लोकल ट्रेन में हुए विस्फोट के मामले के आरोपी निर्दोष होने के बावजूद पिछले 18 वर्षों से जेल में बंद हैं। वरिष्ठ वकील ने उच्च न्यायालय से दोषियों को बरी करने तथा उनकी दोषसिद्धि को रद्द करने की अपील की। न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चंडाक की विशेष पीठ के सामने उम्रकैद के दो सजायाफ्ता मुजरिमों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील एस मुरलीधर ने एक ऐसे चलन का आरोप लगाया जहां आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच करते हुए जांच एजेंसियां ‘सांप्रदायिक पक्षपात’ दर्शाती हैं।
मामले में 12 आरोपियों को ठहराया था दोषी
सितंबर 2015 में अधीनस्थ अदालत ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था तथा उनमें से 5 आरोपियों को मृत्युदंड एवं 7 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने मृत्युदंड की पुष्टि के लिए बंबई उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
सजा को उच्च न्यायालय में दी चुनौती
दोषियों ने भी अपनी दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए अपील दायर की। मुरलीधर ने विशेष पीठ के समक्ष कहा कि “जांच में पक्षपात है। निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया जाता है और कई सालों बाद सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया जाता है। इसका मतलब है कि उनके जीवन के बीत गये समय को लौटाया जाना संभव नहीं है।”
जबदस्ती दर्ज करवाए इकबालिया बयान
याचिका में आरोप लगाया कि जांच एजेंसी राज्य आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने आरोपियों को प्रताड़ित करके उनसे इकबालिया बयान दर्ज करवाए हैं। मुरलीधर ने कह कि “18 साल से ये आरोपी जेल में हैं। तब से वे एक दिन के लिए भी बाहर नहीं निकले हैं। उनके जीवन का अधिकांश हिस्सा खत्म हो चुका है।” उन्होंने दलील दी कि जनाक्रोश वाले मामलों में जांच एजेंसी यह मानकर जांच करती है कि आरोपी दोषी हैं।
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