रामनवमी की रात मानखुर्द और शिवाजी नगर में दंगे

रामनवमी की रात मानखुर्द और शिवाजी नगर में दंगे

मुंबई: रामनवमी की रात मानखुर्द और शिवाजी नगर में हिंसक झड़प एवं दंगा होने की घटना घटी थी। महानगर मुंबई एक बार फिर इस प्रकार के मामलों को लेकर गरमाई रही। स्थानीय प्रशासन के अनुसार, स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन स्थानीय लोग अभी भी सहमे हुए से हैं। राज्य सरकार भले ही मुंबई को आम लोगों के लिए बेहद सुरक्षित महानगर कह रही हो, लेकिन मुंबई पुलिस की रिपोर्ट बताती है कि यह महानगर भी दंगे की दंश को झेलता रहा है। यहां के लोग भी यूपी, राजस्थान, दिल्ली और बिहार की तरह हिंसक घटनाओं का सामना करते हैं। इसकी पुष्टि मुंबई पुलिस से मिली जानकारी करती है। रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई पुलिस पिछले 3 साल में दंगा भड़काने अथवा दंगा करने के 1017 केस दर्ज कर चुकी है।

महानगर मुंबई में 2019 में पुलिस ने दंगा से जुड़ी धाराओं के तहत 375 केस दर्ज किए थे, जबकि 2020 में 324 मामले और 2021 में 318 मामले दर्ज किए थे। गौरतलब है कि दंगा भड़काने अथवा हिंसक झड़प करने पर पुलिस आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा मुख्य रूप से 146 के अलावा 143, 145, 147,148 और 149 समेत अन्य धाराओं के तहत भी केस दर्ज करती है। इसके अलावा आर्म्स ऐक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया जाता है। पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, हिंसक झड़प एवं दंगा भड़काने की घटनाएं 2021 की अपेक्षा 2019 में अधिक घटी थी। 2019 में 57 मामले अधिक दर्ज किए गए थे।

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डिटेक्शन रेट की बात करें, तो 2019 की अपेक्षा 2020 में मात्र एक फीसदी कम केस सॉल्व हुए थे। 2021 का डिटेक्शन रेट 87 फीसदी, जबकि 2019 का 88 फीसदी डिटेक्शन रेट दर्ज की गई थी। हालांकि, 2020 में यह रेट 83 प्रतिशत तक आ गई थी। ओवरऑल बात करें तो 2019 में पुलिस ने 330 केस सॉल्व किए थे और 2020 में 324, जबकि 2021 में यह आंकड़ा 318 पर आ गया। जहां तक दंगा या हिंसक झड़प से निपटने की बात है, तो पिछले 3 साल में दंगे से संबंधित केस को बढ़िया से सॉल्व करने के बावजूद भी 144 केस लंबित हैं। इनमें 2019 के 45 केस, 2020 के 66 केस और 2021 के 33 केस शामिल हैं। ये टेंशन बढ़ा रहे हैं।

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डिटेक्शन रेट औसतन 80 फीसदी होने के कारण मुंबई की सड़कों पर दूसरे राज्यों की तरह गाड़ियों में तोड़फोड़ और टायर जलाने की घटनाएं जल्दी नहीं होती हैं, क्योंकि यहां पुलिस का सूचना तंत्र बेहद मजबूत है। घटना के महज कुछ ही समय में पुलिस मौके पर पहुंच कर उसे नियंत्रित करने के प्रयास में जुट जाती हैं। हालांकि, भीमा कोरेगांव और मुंबई हिंसा जैसी कुछ घटनाएं इसका अपवाद हैं। दंगों की बात करें तो मुंबई पुलिस में 1017 केस दर्ज किए गए। इसमें से अभी 144 केस लंबित हैं।

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