देश के करीब दस लाख बच्चों की जान खतरे में...
The lives of about one million children of the country are in danger.

प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी नामक गंभीर रोग हो सकता है। जानकारी के अभाव में इसका पता देर से चलता है। यह बीमारी बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करती है। हालिया हुए अध्ययन में यह मामला सामने आया है। इस अध्ययन में यह भी जानकारी सामने आई है कि अधिकांश हिंदुस्थानी प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी से वाकिफ ही नहीं हैं, जो चिंता का विषय है।
मुंबई : देश के करीब दस लाख बच्चों की जान खतरे में है। उन्हें प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी नामक गंभीर रोग हो सकता है। जानकारी के अभाव में इसका पता देर से चलता है। यह बीमारी बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करती है। हालिया हुए अध्ययन में यह मामला सामने आया है। इस अध्ययन में यह भी जानकारी सामने आई है कि अधिकांश हिंदुस्थानी प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी से वाकिफ ही नहीं हैं, जो चिंता का विषय है।
उल्लेखनीय है कि प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी विकारों का एक समूह है, जिसमें बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ने या उनके खिलाफ ऑटोइम्यूनिटी विकसित करने में असमर्थ होती है। साथ ही इनमें से कुछ बच्चों की अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के साथ समय पर इलाज न होने पर गंभीर संक्रमण से मौत हो सकती है। हिंदुस्थान में प्राथमिक इम्यूनोडेफिशिएंसी के प्रसार पर आंकड़े अविश्वसनीय हैं, क्योंकि ज्यादातर बच्चे बीमारी का पता लगने से पहले ही मर जाते हैं।
हालिया अध्ययन के अनुसार १.३ अरब की आबादी वाले हिंदुस्थान में करीब १० लाख से अधिक रोगियों में प्राथमिक इम्यूनोडेफिशिएंसी होने का अनुमान है। बाई जेरबाई वाडिया अस्पताल की एक टीम ने ‘जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी : ग्लोबल’ में प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी वाले २१ बच्चों पर एक शोधपत्र प्रकाशित किया है। इसमें बताया गया है कि पीआईडी के लिए प्रत्यारोपित किए गए ९५ फीसदी बच्चे एक वर्ष के फॉलोअप उपचार में जीवित थे, जबकि ८६ फीसदी अपनी बीमारी से पूरी तरह ठीक हो गए थे। अध्ययन में सामने आई जानकारी यह बता रही है कि प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी के शिकार अधिकांश बच्चों के इलाज और प्रत्यारोपण एल्गोरिदम का उपयोग कर किया जा सकता है। इन बच्चों के इलाज में आनेवाली चुनौतियों में बीमारी का देरी से पता चलने की वजह से कई संक्रमणों की संभावना रहती है।
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