सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजों को दी जरूरी नसीहत ... जजों को रोस्टर का करना चाहिए सम्मान
Supreme Court gave important advice to its judges...Judges should respect the roster
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजों को एक जरूरी नसीहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को उस रोस्टर प्रणाली का सम्मान करना चाहिए जिसके तहत उच्चतम न्यायालय और हाई कोर्ट के चीफ जस्टि, न्यायाधीशों को मामलों का आवंटन करते हैं। कोर्ट ने आगे कहा जबतक जबतक कोई याचिका न सौंपी जाए तब तक उसपर विचार न करें।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजों को एक जरूरी नसीहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को उस रोस्टर प्रणाली का सम्मान करना चाहिए जिसके तहत उच्चतम न्यायालय और हाई कोर्ट के चीफ जस्टि, न्यायाधीशों को मामलों का आवंटन करते हैं। कोर्ट ने आगे कहा जबतक जबतक कोई याचिका न सौंपी जाए तब तक उसपर विचार न करें। जस्टिस अभय एस ओका और पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की ओर से सौंपे नहीं गए मामले की सुनवाई करना घोर अनियमितता और न्यायिक अनुशासन के खिलाफ है।
पीठ ने आगे कहा कि जजों को अनुशासन का पालन करना चाहिए।
किसी भी मामले को तब तक नहीं उठाना चाहिए जब तक कि उसे विशेष रूप से मुख्य न्यायाधीश ने न सौंपा गया हो। उन्होंने आगे कहा कि एक न्यायाधीश एक मामला तभी उठा सकता है जब उस श्रेणी के मामलों को उसे अधिसूचित रोस्टर के अनुसार सौंपा गया हो या यदि विशेष मामला मुख्य न्यायाधीश ने विशेष रूप से सौंपा हो। अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट की एक पीठ की तरफ से आरोपी की ओर से दायर सिविल रिट याचिका में एफआईआर को क्लब करने और अंतरिम सुरक्षा मांगने वाले आदेश को रद्द करते हुए यह आदेश पारित किया है। पीठ ने कहा कि आरोपी ने जो हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी वह एक आपराधिक मामले से संबंधित है और आपराधिक रिट याचिका की सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश ने एक अन्य पीठ को नियुक्त किया था।
पीठ ने कहा कि आदेश पारित करने और राहत देने के बजाय, पीठ को उस याचिका को आपराधिक रिट याचिका में बदल देना चाहिए था जिसकी सुनवाई रोस्टर न्यायाधीश की ओर से की जा सकती थी। पीठ ने कहा, 'हालांकि एक सिविल रिट याचिका दायर की गई थी, लेकिन विद्वान न्यायाधीश को इसे एक आपराधिक रिट याचिका में बदल देना चाहिए था जिसे केवल आपराधिक रिट याचिका सुनने वाले रोस्टर न्यायाधीश के सामने रखा जा सकता था।'
पीठ ने आगे कहा कि यह कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग का मामला है। हमें आश्चर्य है कि एफआईआर को क्लब करने के लिए एक सिविल रिट याचिका कैसे मानी जा सकती है? अदालत ने कहा कि आरोपियों को एफआईआर को रद्द करने के लिए अपनी याचिका में राहत नहीं मिली और उन्होंने एफआईआर को क्लब करने की आड़ में अप्रत्यक्ष रूप से राहत पाने के लिए सिविल रिट याचिका दायर करने का सहारा लिया। शीर्ष अदालत ने उन पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
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