महाराष्ट्र की बीड लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर की संभावना... पंकजा मुंडे बचा पाएंगी पिता की विरासत ? 

Possibility of close contest on Beed Lok Sabha seat of Maharashtra... Will Pankaja Munde be able to save her father's legacy?

महाराष्ट्र की बीड लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर की संभावना...  पंकजा मुंडे बचा पाएंगी पिता की विरासत ? 

महाराष्ट्र में पिछले जून तक पंकजा मुंडे की नजर महाराष्ट्र की परली विधानसभा सीट पर थी। जिसे उनके चचेरे भाई और एनसीपी नेता और वर्तमान में मंत्री धनंजय मुंडे ने 2019 में छीन लिया था। तब पंकजा मुंडे ने कहा था कि मैं लोगों के मन में सीएम हूं। इसके बाद पंकजा मुंडे बीजेपी के अंदर ही अलग-थलग पड़ गई थीं।

मुंबई: महाराष्ट्र में पिछले जून तक पंकजा मुंडे की नजर महाराष्ट्र की परली विधानसभा सीट पर थी। जिसे उनके चचेरे भाई और एनसीपी नेता और वर्तमान में मंत्री धनंजय मुंडे ने 2019 में छीन लिया था। तब पंकजा मुंडे ने कहा था कि मैं लोगों के मन में सीएम हूं। इसके बाद पंकजा मुंडे बीजेपी के अंदर ही अलग-थलग पड़ गई थीं।

इसके बाद पंकजा मुंडे राज्य विधानसभा चुनावों से करीब 17 महीने पहले ही तैयारियों में जुट गई थीं, लेकिन जब पिछले साल अजित पवार के नेतृत्व में धनंजय और कुछ अन्य एनसीपी विधायक महायुति (बीजेपी के अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन) सरकार में शामिल हो गए। इसके बाद पंकजा ने परली पर अपना दावा वापस ले लिया।

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इसके बाद बीड लोकसभा सीट से उनकी उम्मीदवारी चर्चा शुरू हो गई। आख़िरकार 13 मार्च को बीजेपी ने पंकजा को उनकी छोटी बहन प्रीतम की जगह बीड से उम्मीदवार घोषित कर दिया। 2024 के चुनावों में अब पंकजा के सामने विरासत के साथ राज्य में राजनीति में अपने को स्थापित रखने की चुनौती है।

महाराष्ट्र का बीड एक पानी की कमी वाला निर्वाचन क्षेत्र है जहां कई लोग गन्ने की कटाई का पारंपरिक काम करते हैं। औद्योगिक विकास की कमी ने इसके विकास को रोक दिया है। जिला मुख्यालय अभी भी रेल संपर्क से वंचित है। इस पूरे क्षेत्र में जबरदस्त जातीय धुव्रीकरण है। मराठा आरक्षण की मांग ने ओबीसी के साथ संबंधों में खटास पैदा कर दी है, जिन्हें अपने कोटे का हिस्सा खोने का डर है।

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बीड महाराष्ट्र का एकमात्र जिला था जहां पिछले साल मराठा आंदोलन के दौरान व्यापक हिंसा देखी गई थी। दिवंगत बीजेपी सांसद और राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा पार्टी का ओबीसी चेहरा हैं और उनके प्रचार काफिले को हाल ही में कम से कई बार 'प्रदर्शनकारियों' ने रोका है। उन्होंने कहा है कि वह एक अलग मराठा कोटा की पक्षधर हैं।

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पंकजा का कहना है कि मेरे विरोधी जाति के नाम पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। मैं सभी जातियों और पंथों के लोगों को साथ लेकर चलने की इच्छुक हूं। पंकजा मुंडे को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का समर्थन मिला है, जिन्होंने एक रैली में लोगों से कहा था कि आप सड़क बुनियादी ढांचे की समस्याओं के समाधान के लिए मेरे पास तभी आ सकते हैं, जब आप पंकजा को वोट देंगे।

महाविकास आघाड़ी में यह सीट शरद पवार को मिली है। पवार ने यहां के जातीय गणित को ध्यान में रखते हुए बजरंग सोनावणे को फिर से नामांकित किया है। मराठा समुदाय से आने वाले सोनवणे बीड जिला परिषद के उपाध्यक्ष थे। वे डिप्टी सीएम अजीत पवार के साथ थे। शरद पवार ने उन्हें टिकट इसलिए दिया है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 5 लाख से अधिक वोट मिले थे, जिसमें वह प्रीतम मुंडे से हार गए थे। सोनवणे ने हाल ही में कहा था कि पंकजा के साथ बीड में लड़ाई उनके लिए आसान होगी।

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सोनवणे ने कहा कि कोई कांटे की टक्कर नहीं है। पंकजा मुड़े टक्कर देने की स्थिति में नहीं है क्योंकि वह बीड में मुश्किल से ही आती हैं। इतना ही नहीं एनसीपी (एसपी ) के प्रदेश प्रमुख जयंत पाटिल ने बीजेपी पर क्षेत्र का विकास करने में विफल रहने का आरोप लगाया है। पाटिल ने कहा था कि उन्हें यकीन है कि एमवीए (कांग्रेस, एनसीपी (एससीपी), शिवसेना (यूबीटी) गठबंधन) बीड सहित कम से कम 33 लोकसभा सीटें जीत रहा है। जिले के विकास के लिए हमें बजरंग को दिल्ली भेजना होगा।

मुंडे परिवार पर हमला करते हुए सोनावणे ने कहा था कि मुंडे द्वारा नियंत्रित वैद्यनाथ सहकारी चीनी मिल दिवालिया हो गई। गन्ना उत्पादकों, ट्रांसपोर्टरों और गन्ना काटने वालों को भुगतान नहीं किया गया है। अपने चुनाव अभियान पर फिजूलखर्ची करने से पहले, मुंडे चचेरे भाइयों को इन लोगों को जवाब देना चाहिए। ऐसे में मुंडे परिवार के लिए इस सीट पर काफी कुछ दांव पर लगा है।

गोपीनाथ मुंडे की 3 जून 2014 को एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई और पंकजा को उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता है। वह 2014 से 2019 तक देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री थीं। लेकिन 2019 में हार के बाद से वह बिना सीट के हैं और विश्लेषकों का कहना है कि यह चुनाव उनके लिए एक परीक्षा है।

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