आसिफ शेख ने इंडियन सेक्युलर लार्जेस्ट असेंबली ऑफ महाराष्ट्र का किया गठन... ‘इस्लाम’ को बनाया आलोचना का शिकार
Asif Sheikh formed the Indian Secular Largest Assembly of Maharashtra... made 'Islam' the target of criticism

मालेगांव मध्य विधानसभा क्षेत्र राज्य का बड़ा मुस्लिम बहुल क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में करीब 85 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता रहते हैं। यहां से हमेशा से विभिन्न पार्टियों के मुस्लिम विधायक चुने जाते रहे हैं। पिछले वर्षों में यहां अधिक समय तक जनता पार्टी, जनता दल और कांग्रेस का उम्मीदवार विधानसभा में प्रतिनिधी होता रहा है।
मालेगांव: मालेगांव मध्य विधानसभा क्षेत्र राज्य का बड़ा मुस्लिम बहुल क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में करीब 85 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता रहते हैं। यहां से हमेशा से विभिन्न पार्टियों के मुस्लिम विधायक चुने जाते रहे हैं। पिछले वर्षों में यहां अधिक समय तक जनता पार्टी, जनता दल और कांग्रेस का उम्मीदवार विधानसभा में प्रतिनिधी होता रहा है।
जनता दल के दिवंगत नेता निहाल अहमद अब्दुररहमान अनतुले के कार्यकाल में कामगार मंत्री भी रह चुके हैं। पिछले 10 से 15 वर्षों में यहां की राजनीति में कई तरह के उतार-चढ़ाव आते रहे। निहाल अहमद की कांग्रेस के शेख रशीद से हार से बाद शहर में तीसरे पक्ष ने जन्म लिया और एक धार्मिक व्यक्तिमत्व वाले धर्मगुरु को नेता बना कर पहले मनपा की सत्ता सौंपी उसके बाद उस नेता को 2 बार विधायक बना दिया।
मुफ्ती मोहम्मद इस्माईल ने पहले अपने तीसरे पक्ष से पूर्व विधायक शेख रशीद को हराया उसके बाद रशीद के बेटे शेख आसिफ से मुफ्ती को 2014 के चुनाव में हराया फिर 2019 में मुफ्ती इस्माईल ने फिर शेख आसिफ को पछाड़ दिया। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति में बड़ा बदलाव आने के बाद मालेगांव के कांग्रेस के नेता और पूर्व विधायक आसिफ शेख ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और राकांपा में शामिल हो गए। राकांपा में फूट पड़ी, इस दौरान आसिफ शेख शरद पवार खैमे में चले गए।
2024 के विधानसभा चुनाव के करीब आते आते कुछ महीनों पहले से ही आसिफ शेख उम्मीदवारी की दौड़ में रहे। वे कांग्रेस छोड़ चुके थे और मविआ के समझौते के अनुसार मालेगांव मध्य कांग्रेस के हिस्से में आने वाला था इसलिए उन्होंने पिछले कई महीने अपनी उम्मीदवारी की चर्चा तक नहीं की।
लोग तर्क लगाते रहे कि आसिफ शेख फिर से कांग्रेस के साथ हो जाएंगे, लेकिन उन्होंने चुनाव की तारीख तय होने के दिन घोषणा की कि वे एक मास्टर स्ट्रोक खेलने वाले हैं। दूसरे दिन उन्होंने एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया और अपनी नई पार्टी इंडियन सेक्युलर लार्जेस्ट असेंबली ऑफ महाराष्ट्र (इस्लाम) बना कर उसके झंडे तले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
इस्लाम पार्टी के लिए आसिफ ने झंडा तैयार कर लिया है जिसका रंग हरा है और उसपर उर्दु भाषा में इस्लाम लिखा हुआ है। उनके मुकाबले में AIMIM का भी हरा झंडा है। आलोचना करते हुए कहा जा रहा है कि अब दो हरे झंडे एक दूसरे से मुकाबला करेंगे।
इंडियन सेक्युलर लार्जेस्ट असेंबली ऑफ महाराष्ट्र, इस नाम को विरोधी पार्टीयां आलोचना की नजर से देखते हुए विभिन्न प्रकार के धार्मिक तर्क दे रही हैं। किसी पार्टी का कहना है कि आसिफ शेख किस तरह से मालेगांव को महाराष्ट्र का सबसे बड़ा सेक्युलर विधानसभा क्षेत्र कह सकते हैं ये सिद्ध करना पार्टी के नाम से जाहिर हो रहा है।
दूसरी ओर पार्टी के नाम के शॉर्ट फार्म ‘इस्लाम’ पर तो जोरदार विरोध जताया जा रहा है। मालेगांव के ही धार्मिक जानकार फतवा दे रहे हैं एक राजनीतिक पार्टी को धर्म के नाम से पुकारना गलत है। इस संबंध में कई प्रकार के फतवे और धार्मिक हवाले दिए जा रहे हैं।
आसिफ शेख जिस प्रकार से धूम-धड़ाके के अपने मास्टर स्ट्रोक को सस्पेंस बना कर लोगों में चुनाव को लेकर भ्रम पैदा कर रहे थे उसी मास्टर स्ट्रोक ने आसिफ शेख और उनकी इस्लाम पार्टी को आलोचना और अपने ही समाज के विरोध का शिकार बना दिया हैं। ऐसे में अब इस्लाम पार्टी का जोर चुनाव के दिनों तक कमजोर पड़ जाने की उम्मीद विरोधी पार्टियां कर रही हैं। अब आसिफ की पार्टी ने विरोधियों को कई प्रकार की टिप्पणियां और फतवे कसने के लिए तैयार कर दिया है।
इंडियन सेक्युलर लार्जेस्ट असेंबली ऑफ महाराष्ट्र किसी पार्टी का इतना बडा नाम जिसका कोई सही अर्थ भी नहीं निकलता उसपर लोग आपत्ति जता रहे हैं। कहा जा रहा है कि किसी व्यक्ति, शहर या संख्या के सेक्युलर होने का प्रमाण कोई नहीं दे सकता। जैसा कि आसिफ शेख द्वारा पार्टी को दिए गए नाम से पता चलता है कि वो मालेगांव को महाराष्ट्र का सबसे बड़ा सेक्युलर क्षेत्र बता रहे हैं।
जबकि इस तरह का प्रमाण देना किसी तरह से संभव नहीं हैं। कौन सेक्युलर है और कौन नहीं इसका नतीजा कोई नहीं निकाल सकता ऐसे में समझा जा रहा है कि उनके क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या अधिक है तो क्या आसिफ शेख केवल मुसलमानों को ही सेक्युलर मानते हैं?
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