समंदर में खतरों की लहरें... १४ साल बाद भी समुद्री किनारों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं!
Waves of dangers in the sea... Even after 14 years there is no concrete arrangement for the security of the sea shores!

२६/११ आतंकी हमले के १४ साल बाद भी समुद्री किनारों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम कर पाने में केंद्र सरकार नाकाम साबित हुई है, इससे समंदर में खतरों की लहरें अभी भी उठ रही हैं। इस नाकामी का खुलासा नियंत्रक व महालेखा परीक्षक कैग की रिपोर्ट में किया गया है।
मुंबई : २६/११ आतंकी हमले के १४ साल बाद भी समुद्री किनारों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम कर पाने में केंद्र सरकार नाकाम साबित हुई है, इससे समंदर में खतरों की लहरें अभी भी उठ रही हैं। इस नाकामी का खुलासा नियंत्रक व महालेखा परीक्षक कैग की रिपोर्ट में किया गया है।
इसको लेकर कैग ने नौसेना की सभी तटीय संपत्तियों की सुरक्षा में देरी की आलोचना की है। कैग ने कहा कि २६/११ मुंबई हमले के बाद सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) ने तीन वर्षों में देश के सभी तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम के निर्देश दिए थे, लेकिन इसके लिए संसाधन जुटाने में १३ से ६१ माह की देरी हुई।
बता दें कि पाकिस्तानी आतंकियों ने २६/११ आतंकी हमले में १० देशों के २८ विदेशी नागरिकों समेत १६६ लोगों की हत्या कर दी थी। ये आतंकी गुजरात के पोरबंदर तट से होते हुए मुंबई पहुंचे थे। इसी को देखते हुए समुद्री सुरक्षा को लेकर कई कदम उठाए जाने की बात कही गई थी।
इसको लेकर कैग ने समुद्री सुरक्षा को लेकर ऑडिट किया है, जिसकी रिपोर्ट अब सामने आई है। संसद में पेश की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मुंबई हमले के बाद गठित ‘सागर प्रहरी बल’ (एसपीबी) को फास्ट इंटरसेप्टर क्रॉफ्ट्स (एफआईसीएस) मुहैया कराने में १३ से ६१ माह का विलंब हुआ।
यहां तक कि जून २०२१ तक कुछ नौसैनिक बंदरगाहों को सुरक्षा के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं थे, जबकि सीसीएस ने फरवरी २००९ में इनकी मंजूरी दे दी थी। सुरक्षा मामलों को लेकर वैâग की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सीसीएस ने सागर प्रहरी के गठन के बाद तीन साल में नौसेना के सभी तटीय केंद्रों की सुरक्षा के निर्देश दिए थे। वैâग की रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्री गश्ती यान एफआईसीएस उपलब्ध कराने में भारी विलंब हुआ। अधिकारियों की तैनाती भी पूरी तरह से नहीं की गई है।
वैâग ने यह भी कहा है कि जिन बंदरगाहों पर हथियारों को तैनात किया गया है, रक्षा मंत्रालय की ‘सैद्धांतिक मंजूरी’ (एआईपी) की २६० सप्ताह की समय सीमा और अनुबंध पूरा करने की ९५ सप्ताह की अवधि खत्म होने के कारण नौसैनिक हेलिकॉप्टरों की मरम्मत में असाधारण देरी हुई।
इस कारण हेलिकॉप्टर १० वर्षों से ज्यादा समय तक खड़े रहे, वहां भी इनका इस्तेमाल बहुत कम हुआ। वहीं बूस्ट गैस टर्बाइन (बीजीटी) को नौसेना द्वारा निर्धारित मात्रा से अधिक रखा गया। बीजीटी की खरीदी का आदेश देते समय उनके स्टॉक का ध्यान नहीं रखा गया, इस कारण नए बीजीटी की खरीदी पर २१३.९६ करोड़ रुपए का ज्यादा खर्च हो गया।
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