सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 पर सुनाएगा निर्णय... चुनौती देने वाली याचिकाओं पर होगा फैसला
Supreme Court will give its decision on Article 370... Decision will be taken on the petitions challenging it.
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध करने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि इस प्रावधान को निरस्त नहीं किया जा सकता था क्योंकि जम्मू और कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल 1957 में पूर्ववर्ती राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद समाप्त हो गया था। उन्होंने कहा था कि संविधान सभा के विलुप्त हो जाने से अनुच्छेद 370 को स्थायी दर्जा मिल गया है। केंद्र ने तर्क दिया था कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को रद्द करने में कोई "संवैधानिक धोखाधड़ी" नहीं हुई थी।
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने संबंधी केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना निर्णय सुनाएगा।
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई 11 दिसंबर (सोमवार) की सूची के अनुसार, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत हैं।
शीर्ष अदालत ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद पांच सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करने वालों और केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि और अन्य की दलीलों को सुना था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी। केंद्र सरकार ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को पांच अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध करने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि इस प्रावधान को निरस्त नहीं किया जा सकता था क्योंकि जम्मू और कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल 1957 में पूर्ववर्ती राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद समाप्त हो गया था। उन्होंने कहा था कि संविधान सभा के विलुप्त हो जाने से अनुच्छेद 370 को स्थायी दर्जा मिल गया है। केंद्र ने तर्क दिया था कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को रद्द करने में कोई "संवैधानिक धोखाधड़ी" नहीं हुई थी।
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