पेंशन के माध्यम से राजकोष बनाम प्रजा कोष...
Rajkosh vs Praja Kosh through pension...

दीर्घकाल में एक बड़ा वर्ग सरकारी नौकरी से दूर भागेगा और सरकार को मानव संसाधन के संकट का सामना करना पड़ सकता है। सरकार चाहे तो सरकारी कर्मचारियों को दोनों पेंशन में से एक चुनने का विकल्प दे सकती है। रिटायरमेंट की अवधि बढ़ा सकती है या पेंशन का भुगतान ६० साल की जगह ६५ या ७० साल के बाद शुरू कर सकती है जब वह अशक्त हो रहा है और उसे पैसिव आय की सख्त जरुरत है, भले ही वह ६० साल में रिटायर हो रहा हो।
मुंबई : पुराने पेंशन स्कीम जिसे ओपीएस कहते हैं और नई पेंशन स्कीम जिसे एनपीएस के नाम से जानते हैं को लेकर रार हमेशा होती रहती है। दरअसल, यह रार पेंशन के माध्यम से राजकोष बनाम प्रजा कोष का है। अर्थज्ञ और वित्तीय विशेषज्ञ को राजकोष की चिंता है क्योंकि उन्हें लगता है कि जीवन प्रत्याशा बढ़ने के बाद रिटायर्ड व्यक्ति का पेंशन काम करने वाले व्यक्ति से वसूला जा रहा है।
पहले जीवन प्रत्याशा कम थी अत: फंड के दबाव का अनुमान कम था लेकिन चूंकि काम करने वाली अवधि और रिटायरमेंट वाली अवधि दोनों के बीच अंतर कम होता जा रहा है और दोनों लगभग आसपास ही पहुंच रहे हैं तो अर्थज्ञ का कहना है कि व्यक्ति ३० साल काम कर अगले ३० साल बैठकर आधी तनख्वाह लेगा, जबकि उस अवधि में उसकी पेंशन की राशि उस दौर के कामकाजी कर्मचारी से ली जाएगी, जिसे आप मौजूदा कर्मचारी करदाता भी कह सकते हैं।
इनका तर्क है कि समय के साथ साथ यह बोझ बढ़ता जाएगा। इसलिए इस पेंशन का मॉडल बदले जाने की जरूरत थी, जिसमें पेंशन की आशा रखने वाला व्यक्ति अपने जीवनकाल में खुद ही व्यवस्था करे। कुछ का कहना था की वैसे भी यह सरकारी कर्मचारियों के लिए ही था बाकी निजी क्षेत्र के कर्मचारी जैसे अपनी व्यवस्था विभिन्न निवेश विकल्पों से कर रहे थे, वैसे ही अब ये कर्मचारी भी करें।
इसके लिए सरकार ने एक वित्तीय इंफ्रा भी कायम किया है, जिसे एनपीएस कहते हैं। इसके माध्यम से सरकारी और निजी कर्मचारी दोनों अपने कमाईकाल में ही अपनी पेंशन की व्यवस्था कर सकते हैं।
बकौल रिजर्व बैंक भी अगर सभी राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू हो जाती है तो राज्यों पर पेंशन भुगतान का बोझ मौजूदा स्तर से ४.५ गुना तक बढ़ेगा जिसका असर २०४० तक दिखेगा तथा एनपीएस की जगह ओपीएस को लागू करने की भारी वित्तीय कीमत राज्यों को चुकानी पड़ सकती है।
यह वित्तीय तौर पर टिकाऊ नहीं है। आरबीआई के अनुसार, ओपीएस को फिर से लागू करना आर्थिक सुधारों को पीछे ले जाने जैसा होगा और वित्तीय सुधार के जो लाभ हो रहे हैं, उनको खत्म करने जैसा होगा। स्टडी में कहा गया है कि ओपीएस में अल्पकालिक आकर्षण तो है, लेकिन मध्यम से दीर्घकालिक चुनौतियां भी हैं। राज्यों द्वारा ओपीएस अपनाने पर वार्षिक पेंशन व्यय में वह २०४० तक अपने जीडीपी का सालाना सिर्फ ०.१ फीसदी ही बचाएंगे। वहीं उसके बाद उन्हें वार्षिक जीडीपी के ०.५ प्रतिशत के बराबर पेंशन पर अधिक खर्च करना होगा।
अर्थज्ञ भी रिजर्व बैंक के सुर में सुर मिलाकर कह रहें हैं कि इस स्कीम के लागू रहने पर एक समय ऐसा आएगा, जब हमारी अर्थ प्रणाली पुरानी पेंशन के तहत भुगतान करने में सक्षम नहीं रह जाएगी। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष २०४१ तक भारत की १६ फीसदी आबादी ६० साल से अधिक उम्र की होने की संभावना है, जबकि यही आबादी साल २०११ में ८.६ फीसदी थी। आरबीआई की स्टडी में कहा गया है कि राज्यों द्वारा ओपीएस में कोई भी वापसी राजकोषीय रूप से अस्थिर होगी। हालांकि इससे उनके पेंशन व्यय में तत्काल गिरावट हो सकती है।
दरअसल, उपरोक्त बातों से यही पता चलता है कि यह लड़ाई प्रजाकोष बनाम राजकोष की है। राजकोष के लिए जिम्मेदार संस्थान को अपने कोष की चिंता है क्योंकि उसकी दृष्टि जिम्मेदारी और उसके देखने का रेंज काफी लंबा और दीर्घकालिक है। वहीं वह प्रजाकोष वाला व्यक्ति जिसे पेंशन मिलता था, उसे लगता है कि पेंशन की व्यवस्था तो अब मुझे करनी पड़ रही है, जब बुढ़ापे में वह अशक्त हो रहा है। दोनों विकल्पों की तुलना में उसे लगता है कि पुरानी वाली पेंशन ही बेहतर थी।
उसकी नजर में ओल्ड पेंशन स्कीम में पेंशन के नाम पर वेतन से कोई कटौती नहीं होती थी जबकि एनपीएस में उसके वेतन से १० फीसदी की कटौती हो रही है। पुरानी पेंशन योजना में जीपीएफ की सुविधा थी वहीं एनपीएस में ाह नहीं है। पुरानी पेंशन गारंटीड पेंशन योजना है जिसे मिलना ही मिलना है भले आप ने बचत किया या नहीं किया, जबकि नई पेंशन योजना बाजार आधारित है और उसकी चाल के आधार पर ही रिटर्न का भुगतान होता है।
पुरानी योजना में रिटायरमेंट के समय जो अंतिम बेसिक सैलरी होती थी उसके ५० फीसदी तक निश्चित पेंशन मिलने का प्रावधान था वहीं एनपीएस में ऐसा कुछ नहीं इसमें पेंशन आपके निवेश और उस पर मिले रिटर्न के आधार पर मिलती है। पुरानी योजना में महंगाई भत्ता लागू होता है वहीं एनपीएस में महंगाई और पे कमीशन का फायदा नहीं मिलेगा।
अगर नौकरी के दौरान सरकारी कर्मचारी की मृत्यु हो जाए, तो उसके आश्रित को नौकरी और फेमिली पेंशन दी जाती थी लेकिन एनपीएस में ऐसा नहीं है। पुरानी योजना में रिटायरमेंट के समय पेंशन प्राप्ति के लिए जीपीएफ से कोई निवेश नहीं करना पड़ता है। एनपीएस में रिटायरमेंट पर पेंशन प्राप्ति के लिए एनपीएस फंड से ४० फीसदी पैसा इन्वेस्ट करना होता है। ओपीएस में ४० फीसदी पेंशन कम्यूटेशन का प्रावधान है एनपीएस में यह प्रावधान नहीं है। एनपीएस में यह पेंशन बीमा कंपनी देगी जबकि पुराने में सरकार की ट्रेजरी देती थी। एनपीएस में किसी भी मुद्दे के मामले में बीमा कंपनी से निपटना होगा।
इतनी अनिश्चितताओं के कारण ही आज भी सरकारी कर्मचारियों को लगता है कि नौकरी के दौरान जितना कोड ऑफ कंडक्ट अन्य आय या अन्य गतिविधि के लिए प्रतिबंध के रूप में होता है कि वह बढ़ते महंगाई और खर्च में बचत कर ही नहीं पाते, निजी क्षेत्र के कर्मचारी की तरह ना तो इनकी सैलरी है न ही वैसा उन्नत प्रमोशन है और न ही अन्य आय कमाने की आजादी है। इतने प्रतिबंधों के बाद जवानी का पूरा इस्तेमाल कर अगर बुढ़ापे में हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया जाय तो यह अमानवीय होने के साथ साथ सरकारी इकोनोमिक सैलरी और कठिन प्रतिबंधों के साथ सरकारी जॉब करने का मोटिवेशन खत्म हो जाएगा।
दीर्घकाल में एक बड़ा वर्ग सरकारी नौकरी से दूर भागेगा और सरकार को मानव संसाधन के संकट का सामना करना पड़ सकता है। सरकार चाहे तो सरकारी कर्मचारियों को दोनों पेंशन में से एक चुनने का विकल्प दे सकती है। रिटायरमेंट की अवधि बढ़ा सकती है या पेंशन का भुगतान ६० साल की जगह ६५ या ७० साल के बाद शुरू कर सकती है जब वह अशक्त हो रहा है और उसे पैसिव आय की सख्त जरुरत है, भले ही वह ६० साल में रिटायर हो रहा हो।
Today's E Newspaper
Related Posts
Post Comment
Latest News

Comment List