महाराष्ट्र : मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने की होड़; मार्च 2025 तक कर्ज का आंकड़ा 7.82 लाख करोड़
Competition to distribute 'freebies'; debt figure will be 7.82 lakh crores by March 2025
महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए दोनों ही मुख्य गठबंधनों – महायुती और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में लंबे-लंबे वादे करने और ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने की होड़ मची हुई है. दोनों ही पक्ष ने जनता से ऐसे-ऐसे वादे कर दिए हैं कि इन्हें पूरा करने पर महाराष्ट्र की बदहाली बढ़नी तय है. राज्य की माली हालत पहले से ही बहुत अच्छी नहीं है.
मुंबई : महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए दोनों ही मुख्य गठबंधनों – महायुती और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में लंबे-लंबे वादे करने और ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने की होड़ मची हुई है. दोनों ही पक्ष ने जनता से ऐसे-ऐसे वादे कर दिए हैं कि इन्हें पूरा करने पर महाराष्ट्र की बदहाली बढ़नी तय है. राज्य की माली हालत पहले से ही बहुत अच्छी नहीं है.
महाराष्ट्र पर कर्ज का बोझ बीते दस सालों में दोगुने से भी ज्यादा हो गया है. 2014 में राज्य पर 2.94 लाख करोड़ का कर्ज था जो आरबीआई के मुताबिक, 2023 में 7.82 लाख करोड़ रुपये हो गया. हालांकि, सरकार का कहना है कि मार्च 2025 तक कर्ज का आंकड़ा 7.82 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचेगा.
महाराष्ट्र नहीं है मालामाल
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने महाराष्ट्र सरकार का खाता-बही खंगालने के बाद हिसाब लगाया है कि राज्य को सात साल में पौने तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना है. यह महाराष्ट्र सरकार के ऊपर कुल बकाया कर्ज का करीब 60 फीसदी हिस्सा ही है. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी की चलते इस अवधि में सरकार को वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ सकता है. शिंदे सरकार ने सीएजी की यह रिपोर्ट विधानसभा में पेश कर दी है. मतलब, सभी नेता राज्य की माली हालत से भली-भांति परिचित हैं.
2024-25 के बजट अनुमान के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार का कुल कर्ज 7,82,991 करोड़ तक जा सकता है. यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 18.35 प्रतिशत होगा. 2022-23 में यह 17.26 प्रतिशत और 2023-24 में 17.59 प्रतिशत था. मतलब कर्ज लगातार बढ़ रहा है.
राजकोषीय घाटा (सरकार की आमदनी और खर्च का अंतर) भी तीन प्रतिशत के मान्य पैमाने से ज्यादा बढ़ चुका है. अफसरों का मानना है कि सरकार कोई नया वित्तीय बोझ उठा पाने की स्थिति में नहीं है. राज्य में 1781.06 करोड़ रुपये खर्च कर स्पोर्ट कॉम्प्लेक्स बनाने के खेल मंत्रालय के प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय के अफसरों ने साफ लिखा कि राज्य सरकार ‘वित्तीय दबाव’ में है और इस वजह से नया खर्च बढ़ाने की स्थिति में नहीं है. मंत्रालय ने इस दबाव के कारणों में से एक कारण नई योजनाओं की शुरुआत करना भी बताया.
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