खुले में शौच से मुक्ति के दावे साबित हो रहे झूठे...मुंबई में 1769 महिलाओं पर सिर्फ एक टॉयलेट

Claims of freedom from open defecation are being proved to be false...Only one toilet for 1769 women in Mumbai

खुले में शौच से मुक्ति के दावे साबित हो रहे झूठे...मुंबई में 1769 महिलाओं पर सिर्फ एक टॉयलेट

PM नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के तहत मुंबई को 2017 में ही खुले में शौच से मुक्ति का प्रमाण पत्र मिल गया था, लेकिन पांच साल भी मुंबई के कई इलाकों में लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं।

मुंबई: PM नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के तहत मुंबई को 2017 में ही खुले में शौच से मुक्ति का प्रमाण पत्र मिल गया था, लेकिन पांच साल भी मुंबई के कई इलाकों में लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। मुंबई में कुर्ला, मानखुर्द, देवनार, शिवाजी नगर, गोवंडी और चेंबूर, वडाला, एंटॉप हिल , मालाड हिल, माहिम जैसे इलाकों में आज भी लोग सुबह-शाम खुले में शौच में जाते हैं।

वडाला के संगम नगर इलाके में सॉल्ट पेन की खाली जमीन में आज भी बड़े पैमाने पर लोग खुले में शौच के लिए लोग जाते हैं। जबकि इसी से सटी बड़ी स्लम एरिया है और सामने एवं कॉलेज भी है। इसी तरह माहिम, मंडाला जैसे इलाकों में भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। पूर्वी उपनगर और पश्चिम उपनगर में कई इलाकों में कुछ लोग आज भी रेलवे की पटरियों के आसपास शौचालय को जाते हैं। 

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वडाला में रहने वाले सिपाही यादव ने कहा कि क्या कर सकते हैं। हजारों लोगों पर एक शौचालय है। साथ ही वहां काफी लंबी लाइन होती है, जिससे समय बर्बाद होता है। इसलिए थोड़ा दूर ही सही खुले में चले आते हैं।

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स्लम में बने शौचालय का दरवाजा टूटा है, पानी की व्यवस्था नहीं रहती। साफ-सफाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। स्वच्छ भारत अभियान के तहत वर्ष 2022 की रैंकिंग में मुंबई की स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन मुंबई अभी भी देश में टॉप 30 से बाहर है।

2011 की जनगणना के अनुसार मुंबई में करीब 52 लाख लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, जो मुंबई की कुल आबादी का 42 प्रतिशत था। जबकि 10 साल बाद मुंबई में स्लम की आबादी बढ़ कर करीब 60 लाख हो गई है। इस आंकड़े के हिसाब से मुंबई में कुल 2.50 लाख सार्वजनिक शौचालय होने चाहिए।

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लेकिन अभी मुंबई में इसके आधे यानी केवल एक लाख बीस हजार के आसपास शौचालय हैं। जिनका निर्माण बीएमसी और म्हाडा ने किया है। इनमें से करीब 25 प्रतिशत शौचालय बेहद बुरी हालत में हैं और उन्हें साफ और सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।

मुंबई को पांच साल पहले खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था। इसके बावजूद मुंबई अभी भी सार्वजनिक शौचालयों की मांग और उनकी उपलब्धता के बीच काफी गैप है। इसको पूरा करने के लिए मुंबई में अभी भी सवा लाख सार्वजानिक शौचालय की आवश्यकता है। स्वच्छ भारत अभियान के मापदंडों के मुताबिक हर 25 लोगों पर एक सार्वजनिक शौचालय होना चाहिए, लेकिन मुंबई इसमें बहुत पीछे है।

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प्रजा फाउंडेशन ने पिछले दिनों खुलासा किया था कि मुंबई में 1769 महिलाओं पर सिर्फ एक टॉयलेट है। वहीं 696 पुरुषों पर एक टॉयलेट है। प्रजा का कहना है कि 2018 में यह देखा गया कि 4 सार्वजनिक शौचालयों में से केवल 1 महिलाओं के लिए था, जो केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत तय किए गए मानक 100-400 पुरुषों तथा 100-200 महिलाओं के लिए 1 शौचालय से काफी कम है।

खुले में शौच की समस्या से निपटारे के लिए स्वच्छ भारत अभियान में सार्वजनिक शौचालयों के अलावा घरों में शौचालय बनाने का प्रावधान भी है। जिसे व्यक्तिगत घरेलू लैट्रिन के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस मामले में भी मुंबई पीछे है।

बीएमसी के एक अधिकारी ने कहा कि वर्ष 2014 में स्वच्छता अभियान शुरू होने के बाद बीएमसी को घरेलू टॉयलेट निर्माण के लिए हजारों आवेदन आए, लेकिन शर्तों को पूरा न करने के कारण आधे को ही मंजूरी मिल पाई। उसमें से भी केवल 20 प्रतिशत का निर्माण हो पाया है। अधिकारी ने कहा कि इसके कई कारण हैं जिसमें जमीन की कमी, सीवेज लाइन बिछाने के निर्माण के लिए कम जगह और पहाड़ी इलाका जैसे कारण हैं।

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