पालघर जिले में बंजर जमीनों पर लहलहा रही हरे सोने की फसल...
In Palghar district, green gold crops are flourishing on barren lands.
राज्य सरकार लगातार किसानों की आय दोगुना करने का दावा करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सरकार किसानों की कोई मदद नहीं कर रही है। यही वजह है कि किसान अब खुद अपने ही बूते खेती-किसानी को मुनाफे वाला काम बनाने की कोशिशों में जुट गए हैं।
पालघर : राज्य सरकार लगातार किसानों की आय दोगुना करने का दावा करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सरकार किसानों की कोई मदद नहीं कर रही है। यही वजह है कि किसान अब खुद अपने ही बूते खेती-किसानी को मुनाफे वाला काम बनाने की कोशिशों में जुट गए हैं। इसी कड़ी में पालघर जिले के किसान ऐसी फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं, जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकती है।
इस क्रम में जिले के विक्रमगढ़, जव्हार जैसे ग्रामीण इलाकों के रहनेवाले सैकड़ों आदिवासी किसानों के बीच बांस की खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है। बांस को हरा सोना कहा जाता है। ये भी कहा जाता है कि बंजर से बंजर भूमि को बांस की खेती से उपजाऊ बनाया जा सकता है।
किसानों को बांस की खेती के लिए एक संस्था लगातार प्रोत्साहित कर रही है और खुद भी संस्था जव्हार में १८ एकड़ जमीन में बांस की खेती कर रही है। बांस की बुवाई के बाद किसान इससे तकरीबन ४० से ६० साल तक मुनाफा कमा सकते हैं। विक्रमगढ़ के टेटवाली, चिंचपाड़ा, वाणीपाड़ा, वाकी जैसे २० गांवों के किसानों ने अपनी खाली पड़ी जमीनों में बांस की खेती शुरू की है।
इसके उपयोग से कार्बनिक कपड़े बनाए जाते हैं। इससे कई तरह के प्रोडक्ट भी बनाए जाते हैं। सजावटी सामानों को बनाने में भी बांस का उपयोग किया जाता है। मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नागालैंड, त्रिपुरा, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र आदि राज्यों में इसकी खेती बड़े स्तर पर की जाती है।
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