हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को लगाई फटकार, शहीद मेजर की विधवा को नहीं मिले पूर्व सैनिक नीति के तहत फायदे...
High Court reprimands Maharashtra Government, widow of martyr Major did not get benefits under ex-serviceman policy...
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पीठ ने कहा कि 'क्योंकि ये विशेष मामला है, इसलिए हमने राज्य की सर्वोच्च अथॉरिटी (मुख्यमंत्री) को भी इस मामले पर प्राथमिकता से विचार करने और उचित फैसला लेने को कहा था। उन्हें इस पर फैसला लेना चाहिए था। अगर उन्होंने फैसला नहीं किया है तो हमें बताएं फिर हम इस मामले को देखेंगे कि क्या करना है।' हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 17 अप्रैल तक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि 'इसके बाद वे मामले से अपने हिसाब से निपटेंगे।'
महाराष्ट्र : भारतीय सेना के शहीद मेजर की पत्नी को कई साल बीतने के बाद भी पूर्व सैनिक नीति के तहत कोई सुविधा नहीं मिली है, जिस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। हाईकोर्ट की जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस फिरदोश पूनीवाला की डिविजन बेंच ने आकृति सूद की याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार को फटकार भी लगाई।
भारतीय सेना के मेजर अनुज सूद 2 मई, 2020 को जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में बलिदान हो गए थे। मेजर सूद को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। मेजर सूद की विधवा आकृति सूद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर महाराष्ट्र सरकार से पूर्व सैनिक नीति के तहत सुविधाएं देने की मांग की थी।
महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि वही लोग पूर्व सैनिक नीति के तहत फायदा पाने के अधिकारी हैं, जिनका जन्म या तो महाराष्ट्र में हुआ हो या फिर वो 15 साल से महाराष्ट्र के निवासी हों। शुक्रवार को राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि मेजर सूद महाराष्ट्र के निवासी नहीं थे। याचिका में आकृति सूद ने कहा कि मेजर अनुज सूद बीते 15 वर्षों से राज्य में रह रहे थे।
सरकार की तरफ से पेश हुए पीपी काकादे ने पीठ को बताया कि हमें इस मामले में नीति संबंधी फैसला लेना होगा और इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत होगी, लेकिन अभी कैबिनेट की बैठक नहीं हो रही है। इस पर पीठ ने नाराजगी जाहिर की और कहा कि 'आप हर बार कोई न कोई कारण बता रहे हैं। ये ऐसा मामला है, जिसमें किसी ने अपना जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया और आप ऐसा कर रहे हैं। हम इससे खुश नहीं हैं।'
पीठ ने कहा कि 'क्योंकि ये विशेष मामला है, इसलिए हमने राज्य की सर्वोच्च अथॉरिटी (मुख्यमंत्री) को भी इस मामले पर प्राथमिकता से विचार करने और उचित फैसला लेने को कहा था। उन्हें इस पर फैसला लेना चाहिए था। अगर उन्होंने फैसला नहीं किया है तो हमें बताएं फिर हम इस मामले को देखेंगे कि क्या करना है।' हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 17 अप्रैल तक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि 'इसके बाद वे मामले से अपने हिसाब से निपटेंगे।'
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