गंभीर परिस्थिति के बाद भी राज्य की सरकार असंवेदनशील - जयंत पाटील

State government insensitive even after serious situation - Jayant Patil

गंभीर परिस्थिति के बाद भी राज्य की सरकार असंवेदनशील - जयंत पाटील

गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़कर ७८,४३७ हो गई है। इतनी गंभीर परिस्थिति के बाद भी राज्य की ईडी सरकार असंवेदनशील बनी हुई है। इसको लेकर राकांपा प्रदेश जयंत पाटील ने राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि केवल सांगली जिले में १ लाख ३४ हजार बच्चों और २४ हजार माताओं का नियमित पोषण आहार बंद हो गया है।

मुंबई : पिछले एक माह से राज्य की आंगनवाड़ी सेविका और सहायिकाएं अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चली गई हैं। इस हड़ताल के कारण पोषण से वंचित लगभग ५.८ लाख बच्चों व लगभग १० लाख गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ डॉक्टरों के मुताबिक, पर्याप्त पोषण के अभाव में लाखों बच्चों के कुपोषण के जाल में फंसने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़कर ७८,४३७ हो गई है। इतनी गंभीर परिस्थिति के बाद भी राज्य की ईडी सरकार असंवेदनशील बनी हुई है। इसको लेकर राकांपा प्रदेश जयंत पाटील ने राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि केवल सांगली जिले में १ लाख ३४ हजार बच्चों और २४ हजार माताओं का नियमित पोषण आहार बंद हो गया है।

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इसमें ३९३ कुपोषित बच्चों का भी समावेश है। इसके साथ ही ११ हजार ६३८ गर्भवती और १२ हजार ८५४ स्तनपान कराने वाली माताओं का भी पोषण आहार बंद हो गया है। उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि जब से आंगनवाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं महीने भर की अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चली गई हैं, तब से लाखों बच्चों और महिलाओं के पोषण पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि सांगली जिले का यह आंकड़ा चौंकाने वाला है।

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पूरे राज्य में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है, यह सोचकर ही दिमाग सुन्न हो जाता है। ऐसे गंभीर मामले में ईडी सरकार इतनी असंवेदनशील वैâसे हो गई है? ऐसा सवाल भी उन्होंने किया। जिस तरह से आंगवाड़ी सेविकाओं की मांगों को सरकार की ओर से नजरअंदाज किया जा रहा है, उससे उनके साथ-साथ समाज के अन्य वर्गों पर भी बुरा असर पड़ रहा है। मुख्य रूप से कुपोषित बच्चे, गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं खतरे में हैं।

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अगर इन बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? ऐसा सवाल भी उन्होंने किया। उन्होंने कहा कि सरकार आंगनवाड़ी सेविकाओं की जायज मांगों को नजरअंदाज कर रही है। उन्होंने सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचने और तत्काल कोई रास्ता निकालने की सलाह दी है।

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